अमेरिका ने शुक्रवार देर रात (21 जून की मध्यरात्रि) ईरान के तीन प्रमुख परमाणु ठिकानों—फोर्डो, नटांज़ और इस्फ़ाहान—पर हवाई हमले किए। इस हमले में अत्याधुनिक B-2 स्टील्थ बॉम्बर और टॉमहॉक मिसाइलों का उपयोग किया गया। अमेरिकी पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने इसकी पुष्टि करते हुए इसे ईरान के “परमाणु खतरे” को खत्म करने की रणनीति बताया। ट्रंप ने इस हमले की जानकारी अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ट्रूथ सोशल पर एक पोस्ट करते हुई दी है।

हमला कैसे हुआ?
अमेरिका के रक्षा सूत्रों के मुताबिक, हमले में “GBU-57A/B MOP” जैसे भारी बंकर-भेदी बमों का उपयोग किया गया जो ज़मीन के अंदर गहराई में बने ठिकानों को तबाह करने में सक्षम हैं।
ये हमले एकसाथ कई दिशाओं से किए गए जिससे ईरान की वायुसेना को प्रतिक्रिया देने का मौका नहीं मिला। अमेरिका का दावा है कि फोर्डो और नटांज़ जैसी परमाणु फैसिलिटीज़ को “गंभीर क्षति” पहुँची है। हालांकि ईरान ने इससे इनकार करते हुए कहा कि नुकसान “सीमित” है और उनकी परमाणु गतिविधियाँ जारी रहेंगी।
ईरान की प्रतिक्रिया
ईरान ने हमले की कड़ी निंदा की है और इसे “अंतरराष्ट्रीय कानूनों का घोर उल्लंघन” करार दिया है। ईरानी रक्षा मंत्रालय ने दावा किया कि उसने कुछ अमेरिकी मिसाइलों को मार गिराया, जबकि कुछ लक्ष्य तक पहुँच गईं। ईरान के सर्वोच्च नेता अयातुल्ला अली खामेनेई ने कहा, “हम इस हमले का जवाब देंगे और अपने देश की संप्रभुता की रक्षा के लिए हरसंभव कदम उठाएंगे।”
बताया जा रहा है कि इस हमले में इज़राइल की गुप्त सूचनाएं और तकनीकी सहयोग भी शामिल था। इज़राइली प्रधानमंत्री नेतन्याहू ने ट्रंप के फैसले की सराहना की और कहा कि “ईरान को उसकी आक्रामक नीतियों का माकूल जवाब दिया गया है।” इससे संकेत मिलता है कि यह हमला दोनों देशों की संयुक्त योजना का हिस्सा था।
अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रियाएं
संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने इस घटना पर गहरी चिंता जताई है और सभी पक्षों से संयम बरतने की अपील की है।
रूस और चीन ने अमेरिका की आलोचना करते हुए इसे “एकतरफा आक्रमण” कहा है।
यूरोपीय संघ ने तुरंत संघर्ष विराम और बातचीत की पहल की मांग की है।
भारत ने इस हमले पर आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं दी है, लेकिन विदेश मंत्रालय ने क्षेत्र में मौजूद भारतीय नागरिकों की सुरक्षा पर नजर रखने की बात कही है। एयरलिफ्ट की योजना फिलहाल रोक दी गई है।


