अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा घोषित “कुल और पूर्ण युद्धविराम (Complete and Total Ceasefire)” के बावजूद, इज़राइल और ईरान के बीच जारी युद्ध में पूरी तरह से विराम नहीं लग सका है। सोमवार शाम को ट्रंप ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ट्रुथ सोशल पर अचानक सीज़फायर की घोषणा की थी, जिसके बाद कुछ देर के लिए क्षेत्र में तनाव कम हुआ, लेकिन कुछ ही घंटों बाद दोनों देशों ने फिर से हमले शुरू कर दिए।
ट्रंप ने की थी ‘शांति की अपील’
डोनाल्ड ट्रंप ने 23 जून को कहा था कि अब “कोई गोली नहीं चलेगी” और “सब विमान लौट जाएंगे”। उन्होंने उम्मीद जताई थी कि ईरान और इज़राइल दोनों इस सीज़फायर का सम्मान करेंगे। ट्रंप ने यह घोषणा उस समय की जब अमेरिका ने ईरानी परमाणु ठिकानों पर एक सीमित हवाई हमला किया था और फिर पीछे हट गया।
बाजारों पर पड़ा सकारात्मक असर
सीज़फायर की घोषणा के बाद वैश्विक बाजारों में सकारात्मक संकेत देखने को मिले। कच्चे तेल की कीमतों में गिरावट आई और अमेरिका का स्टॉक मार्केट भी चढ़ा। विशेषज्ञों का मानना है कि निवेशकों को इससे यह संकेत मिला कि क्षेत्रीय युद्ध और वैश्विक अस्थिरता से फिलहाल राहत मिल सकती है।
फिर भड़का युद्ध
हालांकि ट्रंप की घोषणा के कुछ घंटों बाद ही इज़राइली वायुसेना ने तेहरान के पास एक रडार स्टेशन पर हमला किया। इसके जवाब में ईरान ने भी मिसाइलें दागीं। हालांकि दोनों पक्षों ने अपने हमलों को सीमित और “सावधानीपूर्वक” बताया, लेकिन इससे यह साफ हो गया कि सीज़फायर पूरी तरह से प्रभावी नहीं रहा।
ट्रंप ने जताई नाराजगी
इज़राइल द्वारा किए गए जवाबी हमले पर ट्रंप ने सार्वजनिक रूप से नाराजगी जताई। उन्होंने कहा, “मुझे अच्छा नहीं लगा कि इज़राइल ने युद्धविराम के तुरंत बाद हमला किया।” ट्रंप ने इज़राइल को संयम बरतने की सलाह दी और शांति की दिशा में आगे बढ़ने का आग्रह किया।
राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि ट्रंप का यह कदम एक “राजनीतिक स्टंट” भी हो सकता है, क्योंकि अमेरिका ने औपचारिक रूप से इस सीज़फायर को लागू करने के लिए कोई ठोस रणनीति या निगरानी व्यवस्था नहीं बनाई थी। इज़राइल और ईरान दोनों ने भी इसे लेकर कोई आधिकारिक समझौता नहीं किया था।
ट्रंप की सीज़फायर घोषणा ने कुछ समय के लिए दुनिया को राहत दी, लेकिन यह राहत अल्पकालिक साबित हुई। इज़राइल और ईरान के बीच विश्वास की कमी और तात्कालिक जवाबी कार्रवाइयों ने एक स्थायी समाधान को मुश्किल बना दिया है। विशेषज्ञों का मानना है कि जब तक दोनों देशों के बीच सीधी बातचीत और तीसरे पक्ष की सशक्त मध्यस्थता नहीं होती, तब तक इस युद्ध को रोकना चुनौतीपूर्ण होगा।


