इतिहास में कई युद्ध हुए हैं जिन्होंने लाखों लोगों की ज़िंदगी बदल दी। लेकिन कुछ युद्ध ऐसे भी हुए जो मानवता की सबसे बड़ी त्रासदियों में दर्ज हैं। ऐसा ही एक युद्ध था — प्रथम विश्व युद्ध, और उसमें भी सबसे विनाशकारी लड़ाइयों में से एक थी ‘बैटल ऑफ सोम’ (Battle of the Somme)।
यह लड़ाई 1 जुलाई 1916 को शुरू हुई थी। यह दिन युद्ध के इतिहास में सबसे खूनी दिन के तौर पर दर्ज है, क्योंकि केवल पहले ही दिन करीब 60,000 ब्रिटिश सैनिक हताहत हुए थे, जिनमें से लगभग 20,000 मारे गए थे।
प्रथम विश्व युद्ध की पृष्ठभूमि
प्रथम विश्व युद्ध (1914-1918) यूरोप में मुख्य रूप से दो गुटों के बीच लड़ा गया था:
- मित्र राष्ट्र (Allied Powers): जिनमें ब्रिटेन, फ्रांस, रूस (बाद में अमेरिका) शामिल थे।
- मध्य शक्तियाँ (Central Powers): जिनमें जर्मनी, ऑस्ट्रिया-हंगरी, ऑटोमन साम्राज्य शामिल थे।
1914 से ही पश्चिमी मोर्चे (Western Front) पर फ्रांस और बेल्जियम के इलाकों में ब्रिटिश व फ्रांसीसी सेनाएँ जर्मन सेना से जूझ रही थीं। युद्ध खाईयों (trenches) तक सीमित हो चुका था, जिसमें दोनों ओर के सैनिक महीनों तक एक ही जगह टिके रहते और भारी गोलाबारी होती रहती।
सोम की लड़ाई क्यों लड़ी गई?
1916 आते-आते मित्र राष्ट्रों ने जर्मनी के दबाव को कम करने के लिए एक बड़ा हमला करने की योजना बनाई। इसका उद्देश्य था:
- जर्मन सेनाओं को पश्चिमी मोर्चे पर उलझाए रखना,
- रूस के मोर्चे पर उसका दबाव कम करना,
- तथा फ्रांस के वर्डन (Verdun) में जारी लड़ाई में फ्रांसीसी सेना को राहत देना।
फ्रांसीसी और ब्रिटिश सेनाओं ने सोम नदी (Somme River) के पास एक संयुक्त आक्रमण का निर्णय लिया। यही से इस युद्ध को नाम मिला — बैटल ऑफ सोम।
1 जुलाई 1916 — युद्ध का सबसे भयानक दिन
योजना के मुताबिक, 1 जुलाई की सुबह ब्रिटिश और फ्रांसीसी सेना ने भारी तोपों से 7 दिनों तक की गोलाबारी के बाद हमला शुरू किया।
ब्रिटिश कमांडरों को विश्वास था कि लगातार बमबारी से जर्मन खाईयां नष्ट हो चुकी होंगी। लेकिन जर्मन सेना ने गहरी, मजबूत खाईयां बना रखी थीं। जब ब्रिटिश सैनिक अपनी खाइयों से बाहर निकले और खुले मैदान में बढ़ने लगे, तब जर्मन मशीन गनों ने उन पर भीषण गोलियां बरसाईं।
पहले ही दिन के अंत में:
- ब्रिटेन के लगभग 60,000 सैनिक हताहत हुए, जिनमें से 20,000 से अधिक मारे गए।
- यह ब्रिटिश सेना के इतिहास का सबसे खौफनाक दिन माना जाता है।
लड़ाई कैसे आगे बढ़ी?
हालांकि पहले दिन मित्र राष्ट्रों को जबरदस्त नुकसान हुआ, फिर भी लड़ाई नवंबर 1916 तक यानी करीब 5 महीने चली। इस दौरान:
- ब्रिटिश व फ्रांसीसी सेनाओं ने थोड़ा-बहुत क्षेत्र तो कब्ज़ा किया, लेकिन बहुत बड़ी कीमत चुकानी पड़ी।
- लड़ाई में करीब 30 लाख गोले दागे गए।
- इस युद्ध के दौरान टैंक का भी शुरुआती प्रयोग हुआ।
पूरे युद्ध में सोम की लड़ाई में:
- कुल 10 लाख से ज्यादा सैनिक हताहत हुए (मारे गए या घायल हुए)।
- इनमें जर्मन, ब्रिटिश, फ्रांसीसी, कनाडाई, ऑस्ट्रेलियाई, न्यूजीलैंड आदि देशों के सैनिक शामिल थे।
सोम की लड़ाई का महत्व
भले ही सोम की लड़ाई में मित्र राष्ट्रों को कोई निर्णायक जीत नहीं मिली, फिर भी इसका असर गहरा था:
- जर्मन सेना को भारी क्षति हुई और उसका मनोबल टूटने लगा।
- पश्चिमी मोर्चे पर जर्मनों की रक्षात्मक रणनीति और ज्यादा सतर्क हो गई।
- युद्ध में “खाई युद्ध (trench warfare)” और लंबी घिसटती लड़ाईयों का क्रूर चेहरा सामने आया।
साथ ही, इस लड़ाई में टैंकों का पहला प्रयोग ब्रिटिश सेना ने किया। हालांकि उस वक्त ये तकनीक विकसित नहीं थी, लेकिन आगे चलकर इसीने युद्ध का तरीका बदल दिया।
मानवता की सबसे बड़ी त्रासदी
सोम की लड़ाई युद्ध की क्रूरता का ऐसा प्रतीक बन गई, जिसे आज भी लोग दुख और पीड़ा के साथ याद करते हैं।
- कई जगह सिर्फ कुछ किलोमीटर के इलाके को कब्ज़ाने के लिए लाखों सैनिक मारे गए।
- परिवार बिखर गए, गांव वीरान हो गए, और एक पूरी पीढ़ी युद्ध के घाव लेकर बड़ी हुई।
ब्रिटेन में तो इसे “The Great Slaughter” कहा जाने लगा। वहाँ हर गांव, हर कस्बे में सोम की लड़ाई में मारे गए सैनिकों के नाम स्मारकों पर खुदे हुए देखे जा सकते हैं।
युद्ध स्मारक और आज की पीढ़ी
आज फ्रांस के सोम इलाके में कई युद्ध स्मारक और कब्रिस्तान हैं जहाँ लाखों सैनिक दफन हैं।
- वहाँ हर साल हजारों लोग युद्ध स्मृति में फूल चढ़ाने और इतिहास को समझने जाते हैं।
- स्कूलों के बच्चे भी वहाँ जाकर प्रथम विश्व युद्ध के सबक सीखते हैं ताकि भविष्य में ऐसी भीषण त्रासदियां दोहराई न जाएं।
1 जुलाई 1916 का दिन सिर्फ ब्रिटिश या फ्रांस के लिए नहीं, बल्कि पूरी मानवता के लिए दुखद दिन था। सोम की लड़ाई ने दिखा दिया कि युद्ध किस तरह निर्दोष जवानों की ज़िंदगियाँ छीन लेता है।
आज भी जब हम 1 जुलाई का नाम सुनते हैं, तो सोम की लड़ाई का खून से लथपथ मैदान आँखों के सामने आ जाता है। यह हमें याद दिलाता है कि शांति कितनी अनमोल है और युद्ध किस हद तक विनाश ला सकता है।
आइए, इस दिन हम युद्ध में मारे गए लाखों सैनिकों को श्रद्धांजलि दें और यह संकल्प लें कि मिल-जुलकर शांति और भाईचारे को आगे बढ़ाएंगे।


