भारत और पाकिस्तान के रिश्ते शुरू से ही उतार-चढ़ाव भरे रहे हैं। 1947 में आज़ादी के साथ ही दोनों देशों के बीच कई मुद्दों को लेकर तनाव पैदा हुआ, जिसमें कश्मीर सबसे बड़ा विवाद बना। भारत-पाकिस्तान के बीच अब तक चार युद्ध हो चुके हैं। इन्हीं में से एक 1971 का युद्ध, जिसने पाकिस्तान को दो हिस्सों में बांटकर बांग्लादेश को जन्म दिया। इसी युद्ध के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच शिमला समझौता (Shimla Agreement) हुआ, जो दोनों देशों के रिश्तों में एक नई शुरुआत माना गया।
शिमला समझौता क्या है?
शिमला समझौता एक द्विपक्षीय संधि है, जो भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति (बाद में प्रधानमंत्री) जुल्फिकार अली भुट्टो के बीच 2 जुलाई 1972 को शिमला (हिमाचल प्रदेश) में साइन हुआ।
इस समझौते का उद्देश्य था:
- 1971 के युद्ध के बाद दोनों देशों के रिश्तों को सामान्य करना,
- भविष्य में आपसी विवादों को शांति और द्विपक्षीय बातचीत से सुलझाना,
- और किसी भी तरह की जबरदस्ती या बल प्रयोग से परहेज करना।
शिमला समझौता क्यों हुआ?
1971 के युद्ध में भारत ने पाकिस्तान पर निर्णायक जीत हासिल की। इस युद्ध के बाद:
- 90,000 से अधिक पाकिस्तानी सैनिक भारत के कब्जे में युद्धबंदी (POWs) बने।
- पाकिस्तान का पूर्वी हिस्सा (जो अब बांग्लादेश है) अलग होकर नया देश बन गया।
ऐसे में पाकिस्तान को अपने सैनिकों की रिहाई और भारत से रिश्तों को सामान्य बनाने के लिए एक समझौते की ज़रूरत थी। वहीं भारत भी स्थायी शांति चाहता था ताकि सीमाओं पर बार-बार तनाव और युद्ध की स्थिति न बने।
शिमला समझौते की मुख्य बातें
शिमला समझौते में कई महत्वपूर्ण बिंदु तय किए गए। इनमें प्रमुख हैं:
1️⃣ सीजफायर लाइन को नियंत्रण रेखा (Line of Control – LoC) के रूप में मान्यता:
1949 में बनी युद्धविराम रेखा को अब नियंत्रण रेखा कहा जाने लगा। दोनों देशों ने सहमति जताई कि इसे कोई एकतरफा तरीके से नहीं बदलेगा।
2️⃣ आपसी विवादों को शांतिपूर्ण ढंग से द्विपक्षीय वार्ता के माध्यम से सुलझाया जाएगा:
यानी कोई भी विवाद अंतरराष्ट्रीय मंच पर न ले जाकर केवल आपसी बातचीत से हल किए जाएंगे।
3️⃣ बल प्रयोग या युद्ध से दूर रहना:
दोनों देशों ने आपसी संबंधों में बल प्रयोग नहीं करने और एक-दूसरे की क्षेत्रीय अखंडता व संप्रभुता का सम्मान करने का वादा किया।
4️⃣ राजनीतिक कैदियों और युद्धबंदियों की वापसी:
भारत ने धीरे-धीरे पाकिस्तानी सैनिकों को रिहा करना शुरू किया। इससे पाकिस्तान पर बना अंतरराष्ट्रीय दबाव कम हुआ।
5️⃣ दोनों देशों के बीच आपसी आदान-प्रदान और संपर्क बढ़ाने पर जोर:
मसलन राजनयिक संबंधों को बहाल करना, हॉटलाइन जैसी व्यवस्थाओं को मजबूत करना आदि।
भारत के लिए शिमला समझौते का महत्व
- भारत ने युद्ध जीतकर एक मजबूत स्थिति में रहते हुए इस समझौते को किया।
- नियंत्रण रेखा को पाकिस्तान ने स्वीकार किया, जिससे कश्मीर के स्टेटस को लेकर भारत का पक्ष मजबूत हुआ।
- पाकिस्तान ने द्विपक्षीय बातचीत के जरिए ही मसले सुलझाने की सहमति दी, जिससे भारत के लिए अंतरराष्ट्रीय दखल को रोकने की राह बनी।
- 90,000 पाकिस्तानी सैनिकों को धीरे-धीरे रिहा करके भारत ने अपना नैतिक पक्ष भी मजबूत रखा।
पाकिस्तान के लिए समझौते का महत्व
- युद्ध में हार के बाद पाकिस्तान को एक ऐसा रास्ता चाहिए था जिससे उसे फिर से अंतरराष्ट्रीय मंच पर सम्मान मिल सके।
- शिमला समझौते से उसे अपने सैनिक वापस मिले।
- पाकिस्तान को यह मौका मिला कि वह भविष्य में अपने संबंध भारत से सुधार सके और आर्थिक व राजनीतिक स्थिरता पा सके।
शिमला समझौते की आलोचनाएं भी
हालांकि इस समझौते के कई फायदे हुए, लेकिन इसके आलोचक भी रहे:
- कुछ भारतीय रणनीतिकारों का मानना था कि भारत को युद्ध जीतने के बाद कश्मीर मुद्दे को स्थायी रूप से हल कराने के लिए पाकिस्तान पर ज्यादा दबाव डालना चाहिए था।
- पाकिस्तान में कई कट्टरपंथियों ने भुट्टो पर “भारत के आगे झुकने” का आरोप लगाया।
- वहीं बाद में पाकिस्तान ने कई बार इस समझौते की भावना के विरुद्ध जाकर अंतरराष्ट्रीय मंचों पर कश्मीर का मुद्दा उठाने की कोशिश की।
क्या शिमला समझौता आज भी प्रासंगिक है?
शिमला समझौते का सबसे महत्वपूर्ण पहलू यह था कि भारत और पाकिस्तान ने यह स्वीकार किया कि वे अपने सारे विवाद “द्विपक्षीय बातचीत” से ही हल करेंगे। इसी वजह से भारत हमेशा संयुक्त राष्ट्र या किसी तीसरे देश की मध्यस्थता को खारिज करता रहा है, और शिमला समझौते का हवाला देता है।
हालांकि कई बार पाकिस्तान अंतरराष्ट्रीय मंचों पर कश्मीर मुद्दा उठाता रहा है, फिर भी भारत ने शिमला समझौते को अपनी नीति की मजबूत बुनियाद बनाए रखा है।


